Thursday, June 19, 2008

कैंसर के होने का अंदाजा खुद भी लगा सकते हैं

खुद को आइने में हम रोज देखते हैं- लेकिन आम तौर पर श्रृंगार के लिए। क्यों न सेहत के लिए भी खुद को देखने की आदत डाल लें। जैसा कि पहले भी जिक्र आ चुका है- कैंसर बड़ी बीमारी है लेकिन अपनी सजगता से हम इसके इलाज को सफल और सरल बना सकते हैं- बीमारी का जल्द से जल्द पता लगा कर। कई बार डॉक्टर से पहले हमें ही पता लग जाता है कि हमारे शरीर में कुछ बदलाव है, कुछ गड़बड़ है। शरीर का मुआयना इस बदलाव को सचेत ढंग से पहचानने का एक जरिया है।

त्वचा के कैंसर का पता अपनी जांच कर के लगाया जा सकता है। खूब रौशनी वाली जगह में आइने के सामने अपने पूरे शरीर की त्वचा का मुआयना कीजिए। नाखूनों के नीचे, खोपड़ी, हथेली, पैरों के तलवे जैसी छुपी जगहों का भी।

कहीं कोई नया तिल, मस्सा या रंगीन चकत्ता तो नहीं उभर आया?

कोई पुराना तिल या मस्सा आकार-प्रकार में बड़ा या कड़ा तो नहीं हो गया?

मस्से या तिल का रंग तो नहीं बदला, उससे खून तो नहीं निकलता?

किसी जगह कोई असामान्य गिल्टी या उभार दिखता या महसूस होता है?

त्वचा पर कोई कटन या घाव जो ठीक नहीं हो रहा हो, बल्कि बढ़ रहा हो?


इनमें से किसी भी सवाल का जवाब अगर अपनी जांच के बाद 'हां' में मिलता है तो फौरन डॉक्टर से बात करनी चाहिए।

तंबाकू खाने की आदतों के कारण मुंह का कैंसर भारतीय पुरुषों में सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर है। मुंह के भीतर और आसपास का नियमित मुआयना कैंसर की जल्दी पहचान करने में मदद करता है। इस तरह कई बार तो कैंसर होने के पहले की स्टेज पर भी इसे पहचाना जा सकता है। मुंह के कैंसर के लक्षण कैंसर होने के काफी पहले ही दिखने लगते हैं। इसलिए उन्हें पहचान कर अगर जल्द इलाज कराया जाए और तंबाकू सेवन छोड़ने जैसे उपाय किए जाएं तो इससे बचा भी जा सकता है। मुंह के भीतर कहीं भी- मसूढ़ों, जीभ, तालु, होंठ, गाल, गले के पास लाल या सफेद चकत्ते या दाग या छोटी-बड़ी गांठ दिखें तो सचेत हो जाना चाहिए।

मेरी एक मित्र के पिता न सिगरेट शराब पीते थे न तंबाकू उन्होंने कभी चखा। पर कोई 65 की उम्र में अचानक उन्हें मिर्च या नमक तक खाने में मसूढ़ों में जलन महसूस होने लगी। डॉक्टर के पास जांच करवाई तो पता लगा उन्हें मसूढ़ों का कैंसर था। सब हैरान थे कि बिना किसी गलत शौक के भी कैसे उन्हें कैंसर हुआ। फिर पता लगा, वे लंबे समय से नकली दांतों के सेट का इस्तेमाल कर रहे थे, जो जबड़ों पर ठीक से नहीं बैठता था। और वही था जिम्मेदार उनके मुंह में कैंसर पैदा करने के लिए।

मुंह की जांच भी हर दिन करना चाहिए, खास तौर पर तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन करने वालों और मुंह में नकली दांत लगाने वालों, दांतों को ठीक करने वाले स्थाई तार आदि लगाने वालों, टेढ़े-मेढ़े दांतों वालों, गाल चबाने की आदत वालों को भी। दरअसल कोई भी बाहरी चीज जब मुंह की नाजुक त्वचा को लगातार चोट पहुंचाती है तो एक सीमा के बाद शरीर उसे झेलने से मना कर देता है। नतीजा होता है उस जगह चमड़ी का मोटा होना, छिल जाना, लाल या सफेद हो जाना आदि। यही बाद में कैंसर बनकर फैल जाता है।

मुंह की जांच करने सा सबसे अच्छा समय है, सुबह ब्रश करके मुंह अच्छी तरह धो लेने के बाद। उस समय मुंह में खाने का कोई बचा हुआ अंश नहीं होगा जो जांच में रुकावट डाले।

अच्छी रौशनी वाली जगह में आइने खड़े हो जाएं जहां पर मुंह खोलने पर उसके भीतरी भाग को आसानी से देख सकते हों।

मुंह के हिस्सों को क्रम से देखते चलें-
1. मुंह बंद रखकर अंगुलियों के सिरों से पकड़ कर होठों को उठाएं और उन पर भरपूर नजर डालें।
2. ओठों को उठा कर पीछे कर दें और दांतों को साथ रख कर मसूढ़ों को सावधानी से देखें।
3. मुंह को पूरा खोल कर जीभ के ऊपरी हिस्से को देखें।
4. तालू यानी मुंह की छत पर और जीभ के नीचे भरपूर नजर डालें।
5. गालों के भीतरी हिस्सों को भी अच्छी रौशनी में ठीक से देखें।

कहीं भी कोई घाव, या चकत्ता नजर आता है? चकत्ता सफेद या लाल भी हो सकता है।

मसूढ़ों से खून तो नहीं निकलता? कोई मसूढ़ा किसी जगह सामान्य मसूढ़ों से ज्यादा मोटा तो नहीं हो गया है?

कोई दांत अचानक तो ढ़ीला होकर गिर नहीं गया?

क्या जीभ उतनी ही बाहर निकाल पाते हैं जितनी पहले, या इसमें कोई अड़चन महसूस होती है?

मुंह के भीतर कहीं भी कोई गांठ या असामान्य बात नजर आती है?


अगर इनमें से एक भी सवाल का जवाब 'हां' में पाते हैं तो फौरन डॉक्टर से जांच करवाएं। इसके अलावा आवाज में बदलाव, लगातार खांसी, निगलने में तकलीफ, गले में खराश को भी नजरअंदाज कतई नहीं करना चाहिए।

9 comments:

pallavi trivedi said...

anuradha ji...aapne wakai bahut mahatvpoorn jaankari uplabdh karayi. bahut bahut dhanyvaad..

Ashok Pande said...

आपका काम बहुत महत्वपूर्ण है अनुराधा. बहुत बहुत महत्वपूर्ण.

Anonymous said...

bhut aacha. is tarha ki jankari deti rahiye.

संतराम यादव said...

anuradha ji, wakai aapka prayas sarahniya hai.itni acchi aur upyogi jaankari dene ke liye aapko sadhuwad.

Udan Tashtari said...

एक सार्थक लेखन.

आर. अनुराधा said...

मुझे खुशी है कि इस तरह के 'ज्ञान देने वाले' लेख भी लोग पढ़ रहे हैं। अब एक कदम और आगे, कृपया अपने अनुभव और जिज्ञासाएं भी भेजें ताकि मुझे रास्ता मिले, अगले लेखों की दिशा तय करने में मदद मिले।

PD said...

कल नहीं पढ सका था..
आज पढा.. अच्छा लगा.. ऐसे और भी लेख लिखिये..

mamta said...

अनुराधा आपके लेख लोगों को जागरूक करने मे मददगार साबित हो सकते है।

आर. अनुराधा said...

ममता, क्या यह आपको जागरूक करने में मददगार रहा? दरअसल मुझे लगता है कि जानकारी हममें से बहुतों के पास होती है। लेकिन जानकारी को जागरूकता के स्तर तक हम शायद ही कभी ले जाते हैं। ज्यादातर यही ख्याल आता है कि यह सब मुझे कैसे हो सकता है। मुझे कैंसर नहीं होगा। यह तो औरों को होता है। और (भगवान न करे) एक दिन अचानक पता चलता है कि अरे, यह तो मुझे हो गया। और नकारते-अनदेखी करते-करते इतना बढ़ गया कि इलाज भी मुश्किल होगा- ज्यादा खर्चीला, ज्यादा लंबा, ज्यादा तकलीफदेह, ज्यादा कॉम्पिलिकेटेड और सफलता की कम उम्मीद के साथ। उम्मीद करती हूं कि हम अपनी जानकारी को जागरूकता के स्तर पर ले जाएंगे और इसमें दूसरों को भी मदद करेंगे।

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