Thursday, April 16, 2009

कैंसर पर जानकारी टुकड़ों में (भाग-2)

इंटरनेट पर कैंसर के बारे में ढेरों जानकारी बिखरी पड़ी है। इनका सार आपके सामने रखने की कोशिश में यह सीरीज दे रही हूं। यह मेरे नवभारत टाइम्स में 6 अप्रैल को जस्ट-जिंदगी पेज पर छपे लेख पर आधारित है।

कैंसर को बढ़ावा देते हैं ये सब

1. तंबाकू का सेवन

हमारे देश में पुरुषों में 48 फीसदी और महिलाओं में 20 फीसदी कैंसर की इकलौती वजह तंबाकू है। अगर आप बीड़ी-सिगरेट नहीं पीते, लेकिन मजबूरी में उसके धुएं में सांस लेनी पड़ती है तो भी आपको खतरा है। गुटखा (पान मसाला) चाहे तंबाकू वाला हो या बिना तंबाकू वाला, दोनों नुकसान करता है। हां, तंबाकू वाला गुटखा ज्यादा नुकसानदायक है। तंबाकू या पान मसाला चबाने वालों को मुंह का कैंसर ज्यादा होता है।

2. एक-दो पेग से ज्यादा शराब

रोज दो से ज्यादा पेग लेना मुंह, खाने की नली, गले, लिवर और ब्रेस्ट कैंसर को खुला न्योता है। ड्रिंक में अल्कोहल की ज्यादा मात्रा और साथ में तंबाकू का सेवन कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ा देता है। सबसे कम अल्कोहल बियर में, उससे ज्यादा वाइन में और उससे भी ज्यादा अल्कोहल विस्की व रम में होती है। बेस्ट है कि शराब न लें। अगर छोड़ना मुश्किल है तो एक-दो पेग से ज्यादा न लें।

3. ज्यादा चर्बी (फैट) वाला भोजन

तला हुआ खाना या ऊपर से घी-मक्खन लेने से बचना चाहिए। ज्यादा चर्बी खाने वाले लोगों में ब्रेस्ट, प्रॉस्टेट, कोलोन और मलाशय (रेक्टम) के कैंसर ज्यादा होते हैं। अनुमान है कि कैंसर से होनेवाली 30 फीसदी मौतों को सही खानपान के जरिए रोका जा सकता है। प्रेजर्वेटिव वाले प्रॉसेस्ड फूड और तेज आंच पर देर तक पकी चीजें कम खाएं।

4. नॉन-वेज डिशेज

मीट हजम करने में ज्यादा एंजाइम और ज्यादा वक्त लगता है। ज्यादा देर तक बिना पचे भोजन से पेट में एसिड व दूसरे जहरीले रसायन बनते हैं जिनसे कैंसर बढ़ता है। जर्मनी में 11 साल तक चली स्टडी में पाया गया कि वेजिटेरियन लोगों को आम लोगों के मुकाबले कैंसर कम हुआ। सब्जियों में मौजूद विविध विटामिन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं और कैंसर सेल्स को बनने से रोकते हैं।

5. बार-बार एक्स-रे कराना

एक्स-रे, सीटी स्कैन आदि की किरणें हमारे शरीर में पहुंचकर सेल्स की रासायनिक गतिविधियां बढ़ा देती हैं जिससे स्किन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए अगर आप अलग-अलग डॉक्टरों से इलाज कराते हैं और हर डॉक्टर अलग एक्सरे कराने के लिए कहे, तो डॉक्टर को जरूर बताएं कि आप पहले कितनी बार एक्सरे करा चुके हैं।

6. हार्मोन थेरपी

हार्मोन थेरपी बहुत जरूरी होने पर ही लें। महिलाओं को मीनोपॉज़ के दौरान होनेवाली तकलीफों से बचने के लिए उन्हें इस्ट्रोजन और प्रोजेस्टिन हार्मोन थेरपी दी जाती है। हाल की स्टडीज से पता चला है कि मीनोपॉजल हार्मोन थेरपी से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। हार्मोन थेरपी लेने के पहले इसके खतरों पर जरूर गौर कर लेना चाहिए।

7. लगातार धूप में रहना

सूरज से निकलने वाली अल्ट्रावॉयलेट किरणों से स्किन कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है। धूप में निकलना हो तो पूरी बाजू के कपड़े, कैप, अल्ट्रावॉयलेट किरणें रोकने वाला चश्मा और कम-से-कम 15 एसपीएफ वाले सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना चाहिए। वैसे, हम भारतीयों की स्किन में मेलानिन पिग्मेंट ज्यादा होता है, जो अल्ट्रावॉयलेट किरणों को रोकता है। इससे स्किन को कैंसर का खतरा कम होता है, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं होता।

8. पेनकिलर दवाएं ज्यादा लेना

पेनकिलर और दूसरी दवाएं खुद ही बेवजह खाते रहने की आदत छोड़ें। डॉक्टर की सलाह के बिना दवाएं खाना शरीर के लिए घातक हो सकता है।

4 comments:

Dipti said...

मेरे एक अंकल इनमें से कुछ भी नहीं करते है। शाकाहारी है, न शराब पीते है, न ही सिगरेट, नहीं कुछ ऐसा जोकि आपने लक्षणों में लिखा है। फिर भी उन्हें कुछ साल पहले कैंसर हो गया। इसके पीछे क्या वजह हो सकती है।

संगीता पुरी said...

अच्‍छी जानकारी उपलब्‍ध करा रही हैं आप ... धन्‍यवाद ।

वीरमदेव की चौकी से ......... said...

There is a doctorSHRI O P VARMA R / O KOTA, RAJASTHAN IS ALSO HAVE WRITE A BLOG ON CANCER www.cureallcancerbybudwigsdiet.blogspot.com PLESE SEE THAT

आर. अनुराधा said...

दीप्ति,
कई बार कैंसर होने का कोई कारण सामने नहीं आता, फिर भी हो जाता है। असल में कैंसर कोसिका के भीतर की गड़बड़ी से होने वाली बीमारी है। और हमारे शरीर की खरबों-खरबों कोशिकाओं में से कब, कौनसी कोशा कैसी गड़बड़ी का शिकार हो जाए और उसे सुधार न पाए, कहना कठिन होता है। फिर भी जो मोटे कारण पोस्ट में गिनाए गए हैं वे कैंसर की शुरुआत का माहौल बनाते हैं। ये सभी कारक हमारे शरीर को मुफीद नहीं आते। इसलिए कोशिका और उनके भीतर रसायनों के स्तर पर शरीर उनका प्रतिरोध, मुकाबला लगातार करता रहता है, कभी जीत जाता है तो कभी हार जाता है। यह हार ही बीमारी की शक्ल में सामने आती है। क्यों न हम अपने शरीर की ताकतों को इन बेवजह की लड़ाइयों में जाया न होने दें।

वैसे, यह भी जरूरी नहीं है कि इन कारकों से कैंसर हो ही, और यह भी कतई जरूरी नहीं है कि इन कारणों के न होने भर से कैंसर होना स्थगित हो जाएगा। किसी कोशिका के जीन में कब कैसी गड़बड़ी आ जाए या कोई कोशिका कब सामान्य के बजाए कमजोर कोशिकाओं को जन्म देने लगे, यही पता नहीं चलता।

अनुसंधान जारी हैं जो उम्मीद जगाते हैं कि इसका कारण भी ढूंढ लिया जाएगा। आमीन!

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