Monday, August 17, 2009

‘ऊंची नाक’ के कारण कैंसर से ज्यादा मारे जाते हैं पुरुष?!

कुछ दिनों पहले खबर आई है कि पुरुषों को अपनी अकड़ की कीमत कैंसर से मौत के रुप में भी देनी पड़ रही है। इंग्लैंड में हाल ही में हुए एक अध्ययन के हैरान करने वाले नतीजे निकले हैं। पता लगा है कि स्त्री-पुरुष दोनों को होने वाले कैंसरों से मरने वाले पुरुषों की संख्या महिलाओं के मुकाबले 60 फीसदी ज्यादा होती है। और दिलचस्प बात ये है कि यह अवलोकन बिना किसी अपवाद के इस कैटेगरी के हर तरह के कैंसर पर लागू होता है।

वैज्ञानिकों को इसका कोई बायोलॉजिकल कारण नहीं समझ में आया है।

वैज्ञानकों ने पाया कि पुरुषों के कैंसर से मरने की संभावना महिलाओं से 40 फीसदी तक ज्यादा है। लीड्स मेट्रोपोलिटन विश्वविद्यालय की इस रपोर्ट के लेखकों में से एक प्रो. ऐलन व्हाइट का मानना है कि पुरुषों की जीवनचर्या यानी लाइफ स्टाइल (सिगरेट, मद्यपान, पान मसाला आदि) ही इसका कारण है।

डॉक्टरों का मानना है कि पुरुष जानते हुए भी इस बात को नजरअंदाज करते हैं कि उनके शरीर के बीच के भाग का मोटापा यानी तोंद मोटापे से जुड़े कैंसर और उससे मौत तक होने की संभावना को कई गुना बढ़ा देती है। एक विचार यह भी है कि पुरुष डाक्टर के पास जाना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। वैज्ञानिक मान रहे हैं कि शायद इसीलिए समय पर निदान और इलाज न होना भी इसका एक कारण हो सकता है।

2006 और 2007 में कैंसर के मामलों और इसकी वजह से जान गंवा चुके लोगों के बारे में इकट्ठे किए गए आंकड़ों पर आधारित इस अध्ययन में पाया गया कि पुरुषों में किसी भी प्रकार का कैंसर होने की संभावना महिलाओं के मुकाबले 16 फीसदी ज्यादा है लेकिन उन्हें दोनों में होने वाले कैंसरों के होने की संभावना 60 फीसदी ज्यादा है।

और जैसा कि अक्सर होता है, इन नतीजों पर भी विवाद शुरू हो गया है। इंग्लैंड के जाने-माने कैंसर विशेषज्ञ कैरोल सिकोरा का मानना है कि पुरुषों में कैंसर से ज्यादा मौतों का कारण वहां की राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना (एन एच एस) का पुरुषों के खिलाफ भेद-भाव है। वे कहते हैं कि वहां एन एच एस बरसों से महिलाओं के हित में काम कर रही है जबकि पुरुषों की सेहत की लगातार अनदेखी होती रही है।

लब्बो-लुबाब ये कि इंग्लैंड में पढ़े-लिखे पुरुषों को भी कैंसर के बारे में पढ़ाने-सिखाने की जरूरत महसूस की जा रही है। महज लाइफस्टाइल में सुधार करके ही करीब 50 फीसदी कैंसरों का होना रोका जा सकता है। मगर चिंता की बात ये है कि इन सलाहों पर कोई कान नहीं दे रहा है।

सबक सीखना हो तो- कैंसर को छुपाना, उसके बारे में बात न करना शुतुरमुर्ग का रेत में चोंच छुपाना है। इससे सामने आया खतरा टल नहीं जाता। बल्कि ज्यादा आक्रामक, ताकतवर होकर हमला करता है। कैंसर पर अंग्रेजी में 30 करोड़ से ज्यादा वेबसाइट हैं। कोई यहां पहुंचे तो सही!
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