Sunday, October 16, 2011

कैंसर के इलाज में शरीर के नफे-नुकसान का हिसाब

स्तन कैंसर के इलाज और इसे रोकने की दवा टेमॉक्सिफेन के नुकसान भी हैं

मैंने अपनी किताब ‘इंद्रधनुष के पीछे-पीछेः एक कैंसर विजेता की डायरी’ में अंतिम अध्याय में लिखा है कि मेरे सफल इलाज में, तीसरे स्टेज के कैंसर के बावजूद मेरा जीवन बच पाया तो इसमें ‘एक छोटी सी सफेद गोली टेमॉक्सिन का भी हाथ है’। अपने साइड इफेक्ट्स, जिसमें बच्चेदानी के आवरण का कैंसर तक शामिल है, के बावजूद यह स्तन कैंसर के मरीजों के लिए निश्चिक रूप से जीवन रक्षक है।



स्तन कैंसर का एक बड़ा कारण ईस्ट्रोजन हार्मोन की अधिकता भी है, जिस पर लगाम लगाने के लिए इलाज के बाद पांच साल तक टेमॉक्सिफेन नाम की गोली खाने की सलाह दी जाती है। यह दवा हॉर्मोन रिसेप्टर टेस्ट सकारात्मक आने पर और भी ज्यादा जरूरी समझी जाती है।

हाल ही में कई कैंसर अनुसंधान पत्रिकाओं में एक रिपोर्ट छपी है, जिसमें बताया गया है कि टेमॉक्सिफेन से बड़ी उम्र की महिलाओं में मधुमेह होने का खतरा बढ़ जाता है। 65 साल से बड़ी 14 हजार स्तन कैंसर विजेताओँ पर अनुसंधान के बाद पाया गया कि उनमें से 10 फीसदी को 5 साल के टेमॉक्सिफेन इलाज के दौरान मधुमेह हो गया। यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो के
वीमेंस मेडीकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में हुए इस रिसर्च के मुताबिक टेमॉक्सिफेन लेने से बड़ी उम्र की महिलाओं में मधुमेह का खतरा बढ़ गया।

लेकिन, रिसर्चर्स ने यह भी कहा है कि इसमें ‘खतरे’ की कोई बात नहीं है। क्योंकि टेमॉक्सिफेन का जितना फायदा मरीजों को मिलता है, उसके मुकाबले मधुमेह होने की संभावना का रिस्क बहुत ही छोटा है। कैंसर जानलेवा हो सकता है, पर मधुमेह के साथ वह बात नहीं, अगर उसे काबू में ऱखा जाए। दरअसल टेमॉक्सिफेन ईस्ट्रोजन नाम के हार्मोन को शरीर में बनने से रोकता है। यह हार्मोन महिलाओं के लिए जरूरी है, पर इसकी अधिकता या अनियमितता कई बार स्तन कैंसर को बढ़ावा भी देती है। ऐसे में स्तन कैंसर के मरीजों और कई बार, कैंसर होने की संभावना वाली महिलाओं को भी प्रिवेंशन के तौर पर टेमॉक्सिफेन दिया जाता है। ईस्ट्रोजन का एक काम शरीर में इंसुलिन हार्मोन को बढ़ाना भी है, जो कि रक्त में चीनी की मात्रा पर काबू रखता है। ऐसे में ईस्ट्रोजन की कमी का सीधा असर इंसुलिन पर भी पड़ता है।

टेमॉक्सिफेन के कई और साइड इफेक्ट पहले से ज्ञात है, जैसे खून का थक्का बनना, बच्चेदानी के कैंसर की संभावना, मोतियाबिंद और स्ट्रोक। लेकिन इनके बावजूद यह दवा दसियों वर्षों से दी जा रही है और कारगर भी रही है।

इस रिसर्च में दो और बातें सामने आईं। पहली- टेमॉक्सिफेन का इस्तेमाल बंद करने के बाद इसका असर भी खत्म हो जाता है, यानी इसकी वजह से मधुमेह का रिस्क भी खत्म हो जाता है। दूसरे, एक अन्य ईस्ट्रोजन इनहिबिटर एरोमाटेज़, जो कि अरिमिडेक्स और एरोमासिन नामों से हिंदुस्तान में मिलता है, का कोई ऐसा असर नहीं देखा गया जो मधुमेह से संबंधित हो। कारण यह है कि इसका काम करने का रासायनिक तरीका अलग है।

जो भी हो, साफ बात यह है कि कैंसर के इलाज की हर पद्यति में, हर दवा में शरीर को लगातार बड़े नुकसान होने का खतरा रहता ही है, और ये नुकसान दिखाई भी पड़ते रहते हैं। लेकिन.... लेकिन यह बीमारी इतनी मारक और तेजी से फैलने वाली है कि इसे रोकने के लिए छोटे-मोटे खतरों को नजर-अंदाज कर हर संभव इलाज पहले कराना चाहिए। जीवन बचे, वह सबसे जरूरी है।
शरीर होगा तो उसकी रिपेयर-मेंटेनेन्स होती रहेगी, उसका वक्त मिलेगा। लेकिन अगर कैंसर को न रोक गया तो यह जीवन को ही खत्म कर देगा।

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

Shri Sitaram Rasoi said...

इसे जरूर पढ़ें। http://flaxindia.blogspot.in/2011/12/budwig-cancer-treatment.html
डॉ. ओ पी वर्मा

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